हिंदी भाषा की उत्पत्ति – संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश से हिंदी तक का सफ़र

हिंदी आज विश्व की सबसे बड़ी भाषाओं में से एक है, जिसे करोड़ों लोग मातृभाषा या द्वितीय भाषा के रूप में बोलते हैं। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, साहित्य, इतिहास और भावनाओं का वाहक है। लेकिन हिंदी का यह स्वरूप एक दिन में नहीं बना। इसके पीछे हजारों वर्षों का भाषाई विकास, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामाजिक परिवर्तन छिपा हुआ है।

हिंदी का जन्म संस्कृत से हुआ, लेकिन यह सीधा-सीधा परिवर्तन नहीं था। संस्कृत से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और फिर आधुनिक हिंदी का विकास हुआ। इस यात्रा में भाषा ने समय, समाज और क्षेत्रीय प्रभावों के अनुसार अपना रूप बदला।



1.⁠ ⁠संस्कृत – हिंदी की जननी


संस्कृत, जिसे “देववाणी” कहा गया, प्राचीन भारत की विद्या, धर्म और साहित्य की भाषा रही। ऋग्वेद से लेकर महाकाव्यों और पुराणों तक, संस्कृत में ही रचनाएँ हुईं।

संस्कृत का व्याकरण पाणिनि, पतंजलि और कात्यायन जैसे आचार्यों ने व्यवस्थित किया।

संस्कृत का प्रभाव:

शब्दावली में समृद्धि

व्याकरण की मजबूती

छंद और अलंकार की परंपरा


संस्कृत समय के साथ आम जनता के लिए कठिन होती गई, जिससे बोलचाल में इसके सरल रूप उत्पन्न हुए।



2.⁠ ⁠प्राकृत – लोकभाषा का रूप


संस्कृत से विकसित हुई प्राकृत भाषाएँ अधिक बोलचाल के करीब थीं। “प्राकृत” का अर्थ है “प्राकृतिक” या “स्वाभाविक” भाषा।

प्राकृत का प्रयोग:

जैन और बौद्ध ग्रंथों में

नाटकों और गाथाओं में

प्रमुख प्राकृत भाषाएँ:

महाराष्ट्रि प्राकृत – गाथा साहित्य की भाषा

शौरसेनी प्राकृत – उत्तर भारत में प्रचलित

मागधी प्राकृत – बिहार और बंगाल क्षेत्र में


प्राकृत में संस्कृत की जटिलता कम होकर सरलता आई, जिससे यह जनसाधारण में लोकप्रिय हुई।



3.⁠ ⁠अपभ्रंश – हिंदी की पूर्वज भाषा


लगभग 6वीं से 12वीं सदी के बीच प्राकृत से जो भाषाएँ बनीं, उन्हें अपभ्रंश कहा गया। “अपभ्रंश” का अर्थ है “भ्रष्ट” या “बदला हुआ” रूप।

अपभ्रंश की विशेषताएँ:


सरल उच्चारण

शब्दों का संक्षेप

व्याकरण में लचीलापन

उदाहरण: संस्कृत “किम करोति” → प्राकृत “किं करेइ” → अपभ्रंश “किं करे”


अपभ्रंश में ही दोहा, चौपाई और अन्य लोकछंदों की नींव पड़ी।



4.⁠ ⁠हिंदी का उदय


12वीं से 14वीं सदी के बीच अपभ्रंश से आधुनिक हिंदी की बोलियाँ बनने लगीं।

प्रमुख बोलियाँ:


खड़ी बोली – पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली

ब्रजभाषा – मथुरा, आगरा क्षेत्र

अवधी – पूर्वी उत्तर प्रदेश

बुंदेली, बघेली, राजस्थानी, भोजपुरी आदि


ब्रजभाषा और अवधी में भक्तिकाल के महान काव्य लिखे गए, जबकि खड़ी बोली ने आधुनिक हिंदी का आधार बनाया।



5.⁠ ⁠फारसी और अंग्रेज़ी का प्रभाव


मध्यकाल में मुग़ल शासन के दौरान फारसी का प्रशासनिक और साहित्यिक प्रभाव बढ़ा। फारसी और अरबी के अनेक शब्द हिंदी में आए – जैसे अदालत, किताब, बाजार, अदालत।

औपनिवेशिक काल में अंग्रेज़ी शासन से शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में अंग्रेज़ी शब्द शामिल हुए – जैसे स्कूल, ऑफिस, ट्रेन, पुलिस।



6.⁠ ⁠आधुनिक मानक हिंदी


भारत की आज़ादी के बाद 1950 में हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा मिला।

मानक हिंदी खड़ी बोली पर आधारित है, लेकिन इसमें संस्कृत, फारसी, अरबी और अंग्रेज़ी सभी से शब्द लिए गए हैं।

आज हिंदी का उपयोग:


साहित्य और पत्रकारिता

शिक्षा और प्रशासन

सिनेमा और डिजिटल मीडिया



निष्कर्ष


हिंदी की यात्रा संस्कृत की गूढ़ता से शुरू होकर प्राकृत की सरलता, अपभ्रंश की बोलचाल और आधुनिकता की विविधता तक पहुँची है। यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता का जीवंत इतिहास है।

कवि या लेखक के लिए इस यात्रा को समझना इसलिए ज़रूरी है ताकि वह भाषा के गहरे अर्थ, उसके सांस्कृतिक संदर्भ और साहित्यिक परंपरा को आत्मसात कर सके।


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